आदिवासी त्यौहार मनते रहें ... ताकि धरती की उर्वरता, निर्मलता बची रहे !
आज संपूर्ण विश्व में आदिवासियों के जीवन-व्यवहार, पर्व-त्यौहार, इतिहास, भोजन, रहन-सहन और भाषा, संस्कृति का अध्ययन किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि पहले इनका अध्ययन नहीं किया जा रहा था. यूरोपीय मानव-विज्ञानइन्हें कभी सब-ह्यूमन कह रहा था और लोग इनके नरभक्षी होने, इनकी निर्वस्त्रता, निरक्षरता, गरीबी, विचित्रता को कौतुहलवश देख रहे थे, उन्हें पिछड़ा, निम्न्नस्तरीय बताने के लिए कई सारे मापदंड तैयार कर रहे थे. वहीं सन् 1994 से, दो बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने आदिवासी दशक के रूप में मनाया और दुनिया भर में विभिन्न तरह के कार्यक्रम आदि आयोजित किए गए.