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जयपुर (राजस्‍थान) में मीणा समाज का सम्‍मेलन, अलग धर्म कोड की मांग

"मीणा" जनजातीय समाज की ओर से 13 मार्च 2021, शनिवार, को समस्त भारतीय आदिवासियों के लिए "जनगणना 2021" की प्रपत्र पर एक पृथक "ट्राईबल कॉलम" में जनगणना हेतु एक सेमिनार जयपुर, राजस्थान में संपन्न हुई। इस सम्मेलन में भारत के सभी क्षेत्रों से जनजाति के लोग उपस्थित होकर अपने विचार रखे। सम्मेलन में राजस्थान के पाँच विधायक और दो पूर्व विधायक उपस्थित हुए, जिन्होंने कहा कि आदिवासियों के लिए जनगणना प्रपत्र में एक पृथक गणना होना बहुत जरूरी है, क्योंकि आदिवासी समाज की सही जनगणना होने से गणना अनुसार उनकी अनुपात में हमारी अधिकार दिए जाते हैं, हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध व जैन के कॉलम में गणना होने से

राजस्‍थान में भी जोर से उठ रही है आदिवासी धर्म कोड की मांग

राजस्‍थान: राजस्‍थान के डुंगरपुर से कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा ने सदन में कहा कि ये आरएसएस लोग हमें हिन्‍दू बताते हैं.. हम अपने को हिन्‍दू मानने को तैयार नहीं हैं। हमारे ऊपर हिन्‍दू धम मत थोपो!  आदिवासियों की जीवनशैली, परंपरा और खानपान हिन्‍दुओं से अलग है। और, आदिवासी प्रकृति के उपासक हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह आदिवासियों के लिए अलग से धर्मकोड बनाये। (तस्‍वीर: राजस्‍थान में कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा की.)

सिसई में 65 वर्षीय बाइस पड़हा के नेता कैलाश उरावं की हत्‍या

गुमला (झारखंड) : जिला के सिसई स्थित छारदा पतरा गांव के समीप रविवार रात करीब 8:30 बजे सैंदा टुकूटोली निवासी 22 पड़हा के अगुआ (मुख्‍य नेता) कैलाश उरांव (65) की हत्या कर दी गयी। उनके भतीजे सोमा उरांव (65) का पैर काट कर गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। यह हमला टांगी (धारदार उपकरण) से किया गया। घायल सोमा को बेहतर इलाज के लिए उसे रिम्स (रांची) में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि वारदात को चार लोगों ने अंजाम दिया है। इलाजरत सोमा ने पुलिस को बताया कि वह चाचा के साथ बाइक से भुरसो बेरीटोली से अपने गांव लौट रहा था। छारदा पतरा गांव के समीप चार लोगों ने उन दोनों पर टांगी से हमला कर दिया। परिजनों के

मध्यप्रदेश का 40 फीसदी जंगल निजी कंपनियों को देने का फैसला

भारत सरकार हो या राज्य सरकारें, हर वक्त उनका एक ही नारा होता है आदिवासियों का कल्याण. लेकिन उनका कल्याण करते-करते ये सरकारें अकसर उनको उनके गांव-खेत-खलिहान और उनके जंगलों से बेदखल कर देती हैं. इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश का है. यहां जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों को कम करने, राज्य के जंगलों की परिस्थितिकी में सुधार करने और आदिवासियों की आजीविका को सुदृढ़ करने के नाम पर राज्य के कुल 94,689 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र में से 37,420 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को निजी कंपनियों को देने का निर्णय लिया गया है.

पर्यावरण सिद्धांतों का उल्‍लंघन दरअसल मानवाधिकार हनन का मसला है

वर्तमान पीढ़ी का भावी पीढ़ियों के प्रति अनेक मानवीय दायित्व हैं जो दुनिया सहित भारत में पर्यावरण से संबंधित कानूनों और पर्यावरण प्रभाव के आकलन का बुनियादी वैज्ञानिक-दर्शन है। इस वैज्ञानिक दर्शन पर प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार पर्यावरण प्रभाव के आकलन, कुछ महत्वपूर्ण आधार स्तंभों पर टिके हैं जो भावी पीढ़ियों के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रथमतः यह भावी पीढ़ी के अंतर्पीढ़ी अधिकारों (इंटर जनरेशनल राइट्स) को पूर्ण मान्यता देते हैं। अर्थात पर्यावरण से जुड़े हुए वे तमाम कारक, जो भावी पीढ़ियों के नैसर्गिक अधिकार हैं, बुनियादी तौर पर पर्यावरण प्रभाव के आकलन का प्रथम संदर्भ बिंदु है। दूसरे, यह

मेघालयः लंबित वेतन के लिए हज़ारों स्कूल शिक्षकों ने प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड भेजा

मेघालय के हजारों स्कूली शिक्षकों ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोस्टकार्ड भेजकर केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा अभियान (एसएसएए) मिशन के तहत शिक्षकों का वेतन जारी करने में हस्तक्षेप करने की मांग की। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षकों का वेतन पिछले पांच महीने से लंबित है।

स्कूली शिक्षकों के संगठन का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा उनका लंबित वेतन जारी करने में कथित देरी के विरोध में यह पोस्टकार्ड अभियान शुरू किया गया है।

खाप पंचायत न बने आदिवासी समाज

अपने बुनियादी मूल्यों के खिलाफ जाकर आदिवासी समाज अन्य जाति, धर्म या बिरादरी में विवाह करने वाली अपनी महिलाओं के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगा है। इस प्रवृत्ति के पीछे कौन है? क्या हैं इसके कारण? नीतिशा खलखो इन सवालों को उठा रही हैं

आदिवासी महासम्‍मेलन 2020 : संविधान में आदिवासियों के लिए बने कानून को अमल में लाए सरकार

वाराणसी, जेएनएन :  आदिवासी महासम्‍मेलन उत्‍तर प्रदेश 2020 का आयोजन रविवार को वाराणसी में किया गया। इस दौरान अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.

आदिवासी समाज के इतिहास को दबाया गया

वाराणसी, दुद्धी(सोनभद्र): महारानी दुर्गावती स्मारक स्थल मल्देवा में रविवार को आदिवासी सम्मेलन एवं चिंतन शिविर का आयोजन हुआ। इसकी शुरुआत बावनगढ़ के देवी-देवता एवं आदिशक्ति बड़ादेव के पूजन से हुई। देव कुमार लिंगो ने पूजा अर्चना की।

हम हिंदू नहीं, आदिवासियों ने मांगा ‘आदिवासी धर्म’ का अधिकार

हम हिंदू नहीं हैं, हम भील और गोंड भी नहीं हैं। हम आदिवासी हैं। सरकार 2021 में होने वाली जनगणना में आदिवासी धर्म के लिए अलग कोड और कॉलम निर्धारित करे। यह मांग 25 फरवरी 2019 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एकजुट हुए आदिवासियों ने की। इस मौके पर बामसेफ के खिलाफ भी आवाज उठी

बीते 25 फरवरी 2019 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर के आदिवासी समाज के लोग जुटे थे। वे नारा लगा रहे थे। वे मांग कर रहे थे कि “हम हिंदू नहीं, 2021 में होने वाले जनगणना में हमारे आदिवासी धर्म का अलग कोड और कॉलम हो।”