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 कुड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग सिकि को सितम्‍बर 2025 में मिला यूनिकोड 

झारखण्‍ड में 2री सबसे अधिक जनसंख्‍या वाले आदिवासी उरांव समुदाय अथवा भारत देश् में 4थी सबसे अधिक आदिवासी जनसंख्‍या वाले उरांव समुदाय की कुड़ुख़ भाषा की लिपि, तोलोंग सिकि को सितम्‍बर 2025 में वैश्विक स्‍तर पर UNICODE (BLOCK) में शामिल कर लिया गया है।  UNICODE (BLOCK) में शामिल होने में भारत सरकार के  सूचना प्राद्यौगिकि एवं आई.टी.मंत्रालय  एवं अमेरिका की संस्‍था, संयुक्‍त रूप से कार्य करती है।  इस कार्य को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए अमेरिका में रहने वाले माननीय अंशुमन पाण्‍डेय जी द्वारा वर्ष 2010 में  UNICODE(BLOCK) में शामिल किये जाने हेतु प्रस्‍ताव भेजा गया था,जो एक लम्‍बे समय के बाद 2025 में कार्यरूप में परिवर्तन हुआ। ज्ञात हो कि  UNICODE(BLOCK) में शामिल कराये जाने के लिए भारत सरकार का सूचना प्राद्यौगिकि एवं आई.टी.मंत्रालय के विशेषज्ञ अधिकारियों द्वारा अमेरिका जाकर कार्यरूप दिया जाता है। तोलोंग सिकि,लिपि के  UNICODE(BLOCK) में शामिल होने से उरांव समाज के कुड़ुख़ भाषा प्रेमी बहुत उत्‍साहित हैं और इस अभियान के साथ जुड़े सभी विद्वतजनों को धन्‍यवाद एवं आभार व्‍यक्‍त करते हैं।  
    ज्ञात हो कि लिपि विकास का यह अभियान  झारखण्‍ड अलग प्रांत आन्‍दोलन के आन्‍दोलनकारी छात्र नेताओं के देखरेख में शंखनाद किया गया था और पेशे से चिकित्‍सक डा.नारायण उरांव को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी । वैसे डा.नारायण उरांव कोई पेशेवर लेखक या रिसर्चर तो नहीं थे किन्‍तु आन्‍दोलन एवं 
सामाजिक परिस्थिति ने उन्‍हें एक विचारक बना दिया । इस संबंध में डा.नारायण उरांव द्वारा लिखि गई पुस्‍तकों से ज्ञात  होता है कि वे  1989 से लगातार काम करते रहे, जिसे  पहली बार सितम्‍बर  1993 में लिपि विकास के विषय में स्‍थानीय हिन्‍दी दैनिक आज में खबर छपी । उसके बाद लगातार कई उतार चढ़ाव एव शोध तथा  बदलाव के पश्‍चात 15 मई 1999 को डा.रामदयाल मुण्‍डा एवं डा.श्रीमती इन्‍दु धान (दोनों  पूर्व कुलपति )द्वारा समाज में व्‍यवहार के लिए लोकार्पित किया गया। उसके बाद उरांव समाज में यह लिपि के विकास का जन आन्‍दोलन तेज होता गया। जन आन्‍दोलन में इस लिपि का नाम तोलोंग सिकि रखा गया और आरंभिक दौर में सत्‍यभारती,रांची द्वारा वर्ष 1989 में कईलगा नामक प्राथमिक पुस्स्‍तक छपा,जो  लोगों तक पहूंचने लगा।  इसी दौर में टेक्‍नोलोजी विकास के उदेश्‍य से सत्‍यभारती के ततकालीन निदेशक फा.प्रताप टोप्‍पो एवं डा.नारायण उरांव दोनों मिलकर पेशे से पत्रकार श्री किसलय जी से मिले और तोलोंग सिकि,लिपि का कम्‍प्‍यूटर फोन्‍ट विकसित  करने के लिए आग्रह किये। किसलय जी द्वारा इसे चुनौती के रूप में स्‍वीकार किया गया और एक अबूझ पहेली को सुलझाकर वर्ष 2002 में केलितोलोंग नामक कम्‍प्‍यूटर फोन्‍ट विकसित कर 12.02. 2002 को लोकार्पन किया किया गया। इन विषयों पर समाज मे भी अपने अपने स्‍तर से कार्य होता गया,जिसके अन्‍तर्गत अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद द्वारा संचालित कार्तिक उरांव आदिवासी उच्‍च विद्यालय,रातू,रांची में डा.लक्ष्‍मण उरांव के देखरेख में  तथा कुड़ुख़ कत्‍थ खोड़हा भगीटोली,डुमरी,गुमला में डा.फा.जेफ्रेनियुस बखला उर्फ  डा.एतवा उरांव के देखरेख में अपने स्‍कूलों में वर्ष 2000 से  कुड़ुख़ भाषा तोलोंग सिकि,लिपि के साथ पढ़ाई आरंभ हुई । 
    इसी क्रम में झारखण्‍ड सरकार में माननीय मुख्‍यमंत्री श्री बाबुलाल मरांडी के नेतृत्‍व में झरखण्‍ड के स्‍कूली शिक्षा के पाठयक्रम में एक वि‍शिष्ट  बदलाव किया गया और वर्ष 2002 से ही त्रि‍भाषा फार्मूला यानि हिन्‍दी,अंगरेजी और मातृभाषा लागू हो गया और वर्ष 2003 में झारखण्‍ड सरकार द्वारा तीन भाषा की लिपि,संताली भाषा की लिपि ओल चिकि,हो भाषा की लिपि वरांग चिति तथा कुड़ुख़ भाषा की लिपि तोलोंग  सिकि को मान्‍यता प्रदान किया गया। इसी तरह धीरे धीरे कारवां बढ़ता गया और लूरडिप्‍पा भगीटोली के छात्र 2009 मे तोलोंग सिकि,लिपि से मैट्रि‍क परीक्षा लिखने के लिए तैयार हुए,किन्‍तु परीक्षा लिखवा पाना उतना आसान नहीं था। 
जैक बोर्ड के अधिकारियों ने 2008 में अनुमति देने से इन्‍कार कर दिया और कहा कि सिलेबस का लिपि में पुस्‍तक दिखाएं। यह तकनीकी मामला था अतएव समय रहते इसे पूरा किया जाना था।  इस कर्य में लूरडिप्‍पा भगीटोली डुमरी से  काफिला निकला और गया शहर के सरकारी अस्‍पताल में सेवारत डा. नारायण उरांव क पास पहूंचा। उन्‍होने भी अपने के अग्नि परीक्षा में झोंका और लिप्‍यंतरण का कार्य पूरा हुआ तथा काथलिक प्रेस, रांची के योगदान से तथा फा.अगस्तिन केरकेट्टा एवं विशप डा.निर्मल मिंज के नेतृत्‍व में  कार्य करते हुए तथा जैक बोर्ड के अधिकारी श्री पोलिकार्प तिरकी के सहयोग से लूरडिप्‍पा के 39 छात्रों को तोलोंग सिकि, लिपि मे परीक्षा लिखने की अनुमति मिल गई।
    लूरडिप्‍पा भगीटोली के छात्र 2009 मे तोलोंग सिकि, लिपि से मैट्रि‍क परीक्षा लिखने के बाद यह समझा गया अब भाषा का दोनों रूप अर्थात मौखिक एवं लिखित स्‍वरूप का सरकार मे स्‍वीकृति मिली है, इसलिए अब तकनीकी विकास के क्षेत्र में कार्य हो। तब इस दिशा में वर्ष 2010 में tolongsiki.com नामक वेब  साईट स्‍थापित किया गया। यह वेब साईट खड़ा होने से आदिवासी भाषा की लिपि तोलोंग सिकि वैश्विक पटल पर पहूंच गया। इसी क्रम में अमेरिका वासी श्रीमान अंशुमन पाण्‍डेय जी के द्वारा UNICODE में जगह दिलाने के लिए आवेदन जमा किया गया।  इसी बीच गुमला जिला के सिसई थाना क्षेत्र में कई कड़ुख़ भाषा स्‍कल चलाये जा रहे हैं। इनमें से एक स्‍कूल से परीक्षा लिखने की अनुमति की मांग 2013, 2014 एवं 2015 में की गई। इसी दौर में सिसई विधान सभा के विधायक श्री दिनेश उरांव झारखण्‍ड विधान सभा के अध्‍यक्ष बने और अपने कार्यकाल में स्‍कूल के अभिभावकों के मांग पर झारखण्‍ड में सामान्‍य रूप से स्‍कूलों में 2016 से तोलोंग सिकि से परीक्षा लिखने की अनुमति मिल गई। 
    इस अभियान में वर्ष 2020-21 का समय अच्‍छा रहा। झारखण्‍ड की एक संस्‍था अद्दी कुड़ुख़ चाला धुमकुडि़या पड़हा अखड़ा द्वारा टाटा स्‍टील फाउण्‍डेशन जमशेदपुर के अधिकारियों के साथ सम्‍पर्ककिया गया और लगातार टाटास्‍टील फाउण्‍डेशन के प्रोजेक्‍ट कार्य किया जा रहा है। यह तथ्‍य है कि टाटा स्‍टील फाउण्‍डेशन के मदद से 85 कुड़ुख़  भाषा शिक्षण केन्‍द्र चलाये जा रहे हैं तथा कई पुस्‍तके छपाई करायी जा रहीं हैं। साथ ही kurukhtimes.com  वेब मैगजीन का प्रकाशन कराया जा रहा है। उक्‍त भाषा शिक्षण केन्‍द्र में से लगभग 25 प्राथमिक विद्यालय हैं जो गांव वालों के सहयोग से चलाये जा रहे हैं।    
    तथ्‍य है कि झारखण्‍ड में अबतक कई आदिवासी भाषाओं की लिपि को UNICODE(BLOCK) में स्‍थान मिला  है।  सबसे पहले संताली भाषा की लिपि ओल चिकि को 2008 में UNICODE(BLOCK) में शामिल किया गया। उसके बाद हो भाषा की लिपि वरांग चिति को 2014 में  , मुण्‍डारी भाषा की लिपि नाग मुण्‍डारी को 20022 में एवं भूमिज भाषा की लिपि ओल ओनोल को 2024 में शामिल किया गया है। इस तरह झारखण्‍ड की 05 आदिवासी भाषाओं की लेखन प्रणाली को केन्‍द्र  सरकार के सूचना प्राद्यौगिकि एवं आई.टी.मंत्रालय  के सहयोग से UNICODE(BLOCK) में स्‍थान दिया  जा चका है।  अब समाज की बारी है कि वे अपनी भाषा विकास अभिायान को मुस्‍तैदी से आगे ले जाएं और अपने पर्वजों के धरोहर को संजोने तथा सवांरने में अपनी सहभागिता निभाएं।     

रिपोर्टर '
श्रीमती शुभा उरांव
उप संयोजक,अददी अखड़ा,  रांची।
 

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