रांची, 16 अक्टूबर 2025: रांची में 14 से 16 अक्टूबर तक भारत सरकार के आदिवासी कार्य मंत्रालय और झारखंड सरकार के कल्याण विभाग के सहयोग से "प्रथम धरती आबा आदिवासी फिल्म महोत्सव" का आयोजन किया गया। महोत्सव में पूरे भारत से प्राप्त फिल्मों में कुल 52 फिल्मों का चयन प्रदर्शन के लिए किया गया था जिनमें आठ फिल्में जूरी सदस्यों की थी जो प्रतियोगिता में शामिल नहीं थीं। इस तरह कुल चवालीस फिल्में प्रतियोगिता के लिए प्रदर्शित की गईं।
इस अवसर पर विशेष रूप से जूरी के अन्य सदस्य मुंबई से कृष्णा सोरेन और कोलकाता के श्यामल कर्मकार जैसे फिल्मकारों ने श्रेष्ठ फिल्मों के चयन में सहयोग दिया । जूरी सदस्य महादेव टोप्पो ने बताया कि उनका रांची में सिने सोसायटी से पुराना नाता है। वर्ष 1992 से 1994 तक रांची में उनकी पोस्टिंग रही थी और वे उस समय रांची की "सिने सोसाइटी" की गतिविधियों से जुड़े हुए थे। उन्होंने फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, पुणे में "फिल्म रस्सावादन प्रमाण पत्र पाठ्यक्रम 1994" में भाग लिया था।महादेव टोप्पो ने विशेष रूप से " क्षेत्रीय प्रबंधक - ए.पी.खांडेकर " को याद किया,जिन्होने तब उन्हें छुट्टी देकर इस अवसर के लिए सहयोग किया था। श्री टोप्पो को अन्य जूरी सदस्यों कृष्णा सोरेन और श्यामल कुमार कर्मकार के साथ चमरा लिंडा, कल्याण मंत्री झारखण्ड सरकार एवं टी.आर.आई., रांची के पूर्व निदेशक और हिंदी के ख्यात लेखक रणेन्द्र जी द्वारा "मोमेंटो एंड प्रशस्ति पत्र" देकर सम्मानित किया । महादेव टोप्पो ने जूरी सदस्यों की ओर से महोत्सव के फिल्मों के बारे कहा कि ' देश भर से आए विभिन्न भाषाओं के फिल्मों को देखकर भारतीय आदिवासियों के जीवन की विविधतापूर्ण परिस्थितियों को समझने का मौका मिला। वृहद् झारखण्ड में संताली फिल्में काफी प्रभावी हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में कुँड़ुख, हो, मुण्डा, खड़िया आदि भाषाओं की फिल्में भी प्रदर्शित होंगी।' डेढ़ घंटे से लंबी पुरस्कृत फिल्मों के वर्ग की फिल्में स्त्री प्रधान थीं जबकि शॉर्ट फीचर फिल्मों में बच्चों की केन्द्रीय भूमिका रही। फिल्मों तथा फिल्मोत्सव के बारे निरंजन कुमार कुजूर लगातार प्रेस एवं सोशल मीडिया को जानकारी और पत्रकारों के विभिन्न सवालों का उत्तर देते रहे फलत: इस आदिवासी फिल्मोत्सव के बारे जनता के बीच उपयुक्त माहौल बन पाया। रूपेश साहू ने बताया कि इस आयोजन में तीन दिनों में पांच से छह हजार दर्शक आए। बीजू टोप्पो निर्देशित अंडमान के कुँड़ुख आदिवासियों पर बनी " टापू राजी " तथा निरंजन कुजूर की लघु कथा फिल्म "एड़पा काना" भी प्रदर्शित की गई। ये फिल्में प्रतियोगिता में शामिल नहीं थीं। लोककथा, साहित्य और सिनेमा के अंतर्संबंधों के महत्व पर आयोजित एक परिचर्चा में डाॅ पार्वती तिर्की, निरंजन कुमार कुजूर और स्नेहा मुंडारी ने भाग लिया। इसका संचालन महादेव टोप्पो ने किया।
इस महोत्सव के आयोजन से फिल्म प्रेमियों और फिल्मकारों के बीच कला और सिनेमा के प्रसार का एक महत्वपूर्ण मंच तैयार किया जा सका है। आशा है आदिवासी फिल्मकार और कलाकार अपनी मातृभाषा में बेहतर फिल्में बनायेंगे और अपने समुदाय के जीवन की कहानी फिल्मों के माध्यम से बताने का प्रयास करेंगे। टी.आर.आई के सहायक निदेशक राकेश रंजन उराँव ने इस आयोजन की सफलता हेतु दर्शकों एवं अन्य राज्यों से आए फिल्मकारों का आभार व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने मीडिया पर चर्चा के लिए मीडिया से जुड़े लोगों को धन्यवाद ज्ञापित किया और आशा व्यक्त की कि लोग अब कलात्मक आदिवासी फिल्मों का अधिक से अधिक समर्थन करेंगे और आदिवासी फिल्म निर्माता भी सामने आयेंगे।
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